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ग़ज़ल
हुस्न का तालिब अगर है इश्क़ के आज़ार खींच
सदमा-ए-हिज्र-ए-मसीहा ऐ दिल-ए-बीमार खींच
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
चला है ओ दिल-ए-राहत-तलब क्या शादमाँ हो कर
ज़मीन-ए-कू-ए-जानाँ रंज देगी आसमाँ हो कर